Wednesday, May 13, 2009

जुदाई

ये दुनिया समजती है ,
की हम दोनों अलग हो गये है।
इन्हे कैसे समझायें,
की हम दूर रहकर भी कितने पास है?
आपके ह्रदय सागर की लहेरें,
मेरे मन के किनारे भिगोती है।
आपकी धुपबत्ती की खुशबू ,
मेरी सांसो में भर जाती है।
आपके महल में जलता दिया ,
मेरी झोंपडी को रोशन करता है।
लोग कहेते है जुदाई में,
मेरे होठ फिक्के पड़ गये है।
वो क्या जाने की ,
जब आप मुझे चूमना चाहते है ,
मेरे होठों की लाली
आपके होठों तक पहुँच जाती है।
ये दुनिया समजती है ,
की हम दोनों अलग हो गये है
इन्हे कैसे समझायें,
की हम दूर रहकर भी कितने पास है?

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