Monday, February 15, 2010

होले होले

ये क्या होने लगा है मुझे
की तू  खुबसूरत लगने लगी
होले होले; होले होले

तू  आने से पहेले ही
तेरी  आहट आने लगी
होले होले; होले होले

तेरे दर से गुजरते वक्त
चाल हो जाती  मेरी मद्धम
होले होले; होले होले

तुझसे नज़र चुराते चुराते
देख लेता हूँ तुझे चुपकेसे
होले होले; होले होले

कोई समझे या ना समझे
मेरा प्यार तू समझ लेना
होले होले; होले होले

 ना समझ पाई तू प्यार मेरा
तो जीते जी मर जाऊंगा मैं.
होले होले; होले होले

Thursday, February 11, 2010

स्वर्ग प्राप्ति

पात्र : १) यमदूत २) चित्रगुप्त ३) बन्टी ४) नेताजी ५) अष्टपुत्रे
(चित्रगुप्त की कचहरी : मध्य में चित्रगुप्त का आसन और टेबल । एक और स्वर्ग का द्वार और दूसरी और नर्क का द्वार । नर्क के द्वार के पड़ोस में पृथ्वी से आने का रास्ता। यमदूत अष्टपुत्रे को चाबुक से मारते हुए प्रवेश करता है।)
अष्टपुत्रे : अरे ! अरे! कौन हो तुम? इंसान हो या हैवान?
यमदूत : न तो मै इंसान हूँ, न ही हैवान ! मै तो यमदूत हूँ, यमदूत।
अष्टपुत्रे : यमदूत ? अरे भाई तो पहेले ही बताते ना! जब से मेरी शादी हुई है, तबसे तुम्हारा ही तो इंतज़ार कर रहा था ।
यमदूत : अरे छोडो! यहाँ आने पर सब ऐसे ही कहेते है! और वहा! पृथ्वी पर सब मेरे डर के मारे जीवन विमा करवा लेते है।
अष्टपुत्रे : नही! नही! में उनमें से नही हूँ। मैंने तो हमेंशा पलके बिछाके आपका इंतज़ार किया है। अरे, जरासी खांसी भी हो जाती थी, तो लगता था , की तुम आ रहे हो! पर तुम तो आए ही नही! मेरे पड़ोस में २-३ बार आ के गए, पर मुझे दर्शन नही दिए तुमने।
यमदूत : उसकी भी वजह है । मुझे भी सिनिओरिटी देखनी पड़ती है। तुम्हारे पड़ोस में ८० साल का बुड्ढा था, उस से पहेले तुम्हे उठाता तो मेरे पर रिशवत लेने का इल्जाम लगता ना!
अष्टपुत्रे : अच्छा! फ़िर उस लच्छू पहेलवान को मेरे से पहेले क्यूँ उठाया ? वो तो मेरे से काफी जूनियर था!
यमदूत : अच्छा ! वो ? लच्छू ? उसकी वजह से तो तुम्हारी पुरी चाल गिरने वाली थी! वो पहेलवान रोज़ छत पे जा के वेट लिफ्टिंग करना था! उसके वेट से चाल गिर जाती तो मेरा ही काम बढ़ जाता! सो उठा लिया।
अष्टपुत्रे : ठीक है! ठीक है! देरसे ही सही! आ तो गए! Thank u Very Much.
यमदूत : you are wellcome
अष्टपुत्रे : अब जल्दी से ये बताओ , की मै किस रास्ते से स्वर्ग में जाऊ? फ़िर मैं तुम्हे दुबारा thank you बोलूँगा।
यमदूत : इतनी जल्दी स्वर्ग में जाने को नही मिलेगा!
अष्टपुत्रे : वो क्यूँ भला?
यमदूत : हमारे चित्रगुप्त साब अभी यहाँ पे आयेंगे। और आपके पाप और पुण्य का Balance sheet बनायेंगे. फ़िर फैसला होंगा, की आपका ट्रान्सफर स्वर्ग में करना है या नर्क में?
अष्टपुत्रे : अरे बाप रे! यहाँ भी ट्रान्सफर का चक्कर है? अरे इस ट्रान्सफर के चुंगल से बचने के लिए मैंने जिन्दगी भर प्रमोशन नही लिया! ठीक है कोई बात नही! मै जरा स्वर्ग को एक नज़र देख तो लूँ।
यमदूत : ठीक है। चलेगा पर अन्दर जाना मना है! चाहो तो नर्क के अंदर जा के पुरा घूम के आ सकते हो। (यमदूत पृथ्वी की ओर जाने लगता है)
अष्टपुत्रे : अरे! तुम कहाँ चल दिए?
यमदूत : कहाँ मतलब? वापिस पृथ्वी पर। ड्यूटी पर हूँ मै। अभी तो बहुत लोगों के प्राण लेने है, मुझे! आज का कोटा जो पुरा करना है! नही तो यमराज मेमो देंगे!
अष्टपुत्रे : हा हा हा ! यहाँ भी मेमो मिलता है! हा हा हा
यमदूत : हँसते हो! एक तो हम यहाँ पे मरते दम तक काम करते है, फ़िर भी लाखों के प्राण हरने पर भी काम पेंडिंग ही रहेता है। और यहाँ पर over time भी नही मिलता। और ऊपर से बार बार यमराज की डांट और मेमो।
अष्टपुत्रे : अरे रे! बिचारा यमदूत! जिन्दगी से उबता गए होंगे फ़िर तो तुम?
यमदूत : अब क्या कहे? मेरा तो मर जाने को मन करता है, पर उसमे भी मेरा ही काम बढेगा ना!
अष्टपुत्रे : यमदूत जी, मुझे तो आप पर तरस आ रहा है!
यमदूत : Thank you
अष्टपुत्रे : एक बात बताओ यमदूत, तुम ये अंग्रेज़ी कहाँ से सीखे?
यमदूत : मै बैंक में अफसर था! वहां मेरे subordinates को बहुत डांटता था। इसी लिए मरने के बाद मुझे यमदूत की पोस्ट मिली। यहाँ पे भी experience देखते है! ठीक है, मै चलता हूँ. (चला जाता है)
अष्टपुत्रे : आख़िर मै पहुँच ही गया! जहाँ पर दो वक्त के रोटी की चिंता न सताए, वहाँ पहुँच ही गया। अब! अब तो ऐशो आराम! अमृत का रस-पान! गन्धर्वों का गान! अप्सराओं का नृत्य! भोजन में ढेर सारे पकवान! और ये सब देवताओं की साथ में। आहा हा आहा ! स्वर्ग सुख की कल्पना मात्र से मन कितना सुखद हो गया है! आहा हा !
(बन्टी प्रवेश करता है. सर पे टोपी और रंग बिरंगी कपड़े पहेने है)
बन्टी : अरे ! अष्टपुत्रे! आप यहाँ पर?
अष्टपुत्रे : तुम कौन हो?
बन्टी : बस क्या? ऊपर आते ही भूल गए मुझे? नीचे तो बड़े काम करवाते थे मुझ से!
अष्टपुत्रे : अरे तुम! बन्टी!
बन्टी : अब कैसे पहेचाना!
अष्टपुत्रे : बन्टी, तुम यहाँ कैसे?
बन्टी : कैसे मतलब? जैसे आप यहाँ पहुंचे वैसे ही मै भी पहुँचा!
अष्टपुत्रे : मतलब तुम भी मर गए! तुम भी एक आत्मा हो!
बन्टी : कैसे लग रहा है मेरा आत्मा? मस्त दिख रहा है न! शाहरुख़ की तराह?
अष्टपुत्रे : आत्मा को मारो गोली! तुम मरे कैसे ये बताओ!
बन्टी : आपकी लड़की की वजह से!
अष्टपुत्रे : (गुस्से में) बन्टी !
बन्टी : अरे, मेरा कोई चक्कर नही था उसके साथ! ना ही मैंने उसके प्रेम भंग के कारण आत्महत्या की है! इतनी सुंदर थोडी न थी वो?
अष्टपुत्रे : अरे, फ़िर मेरी बेटी की वजह से तुम कैसे मरे?
बन्टी : असल में हमारे colony से पिकनिक गई थी, उसमें आपकी ७ नम्बर की बेटी, सुमी भी आई थी।
अष्टपुत्रे : क्या? मुझे बताये बगैर सुमी पिकनिक पर गई?
बन्टी : आपको बताये बगैर उसने और भी बहुत काम किए है! जो आपको बताने लायक भी नही है!
अष्टपुत्रे : ठीक है ठीक है । आगे बोलो! पिकनिक में क्या हुआ?
बन्टी : हम सब बोट में बैठकर धमाल कर रहे थे। आप की सुमी तो ढोलक की ताल पर क्या मस्त डांस कर रही थी! सभी मस्ती के माहोल का मजा ले रहे थे, की अचानक, अचानक सुमी का बैलेंस गया और वो पानी में गिर गई!
अष्टपुत्रे : ओह! फ़िर?
बन्टी : फ़िर क्या? उसको पानी में गिरते देख के मैंने भी पानी में छलांग लगायी! बाद में याद आया की, मुझे तो तैरना भी नही आता!
अष्टपुत्रे : अरे भगवान् ! फ़िर क्या हुआ?
बन्टी : फ़िर क्या? वो डूबते डूबते बच गई, और मै बचाते बचाते डूब गया! वो तैरते तैरते किनारे पहुँच गई, और मै यमदूत का हाथ पकड़ यहाँ पहुँच गया! पता ही नही चला की भवसागर पार हो गया!
अष्टपुत्रे : अच्छा हुआ! अच्छा हुआ! वो बच गई ये भी अच्छा हुआ और तुम भवसागर पार कर गए, ये भी अच्छा ही हुआ! वहां की लड़कियां अब चैन से रहे पाएगी।
बन्टी : मरने के बाद भी आपकी ताने देने की आदत गई नही! अच्छा, आप कैसे मरे, ये तो बताइए।
अष्टपुत्रे : मेरी मौत तो हार्ट अटैक से हुई। रास्ते पे जा रहा था, की एक खुबसूरत औरत का धक्का लगा था बस!
बन्टी : फ़िर तो ठीक ही है! इस उम्रमें औरत को धक्का दोगे तो और क्या होगा? चलिए, आपके लिए मौत तो सुखद रही!
अष्टपुत्रे : अरे! जान कब निकल गई पता ही नही चला ! जब पता, तब बहुत ऊपर पहुँच गया था।
बन्टी : अच्छा अच्छा! अब यहाँ से कहाँ?
अष्टपुत्रे : अब यहाँ चित्रगुप्तजी आयेंगे और अपने पाप पुण्य का लेखा जोखा करके हमें स्वर्ग या नर्क में भेजेंगे।
बन्टी : फ़िर तो थोडी ही देर में हम दोनों अलग अलग हो जायेंगे। मेरा रास्ता स्वर्ग का और आप नर्क की तरफ़ जाओगे!
अष्टपुत्रे : तुम और स्वर्ग में? अगर चित्रगुप्त दो चार बोतलें पि कर आए, तभी सम्भव है! नही तो तुम पक्का नर्क में ही जाओगे!
बन्टी : ठीक है कोई बात नही! आप का साथ मिलेगा! सुमी की बातें करेंगे!
अष्टपुत्रे : बन्टी, टपोरी, पुरी जिन्दगी परेशान किया, अब तो बक्शो, मुझे और मेरी बेटी सुमी को! सुख से जीने तो नही दिया कमसे कम मरने के बाद तो सुख से रहेने दो!
बन्टी : अरे अरे ऐसे घबराइये मत! अगर आपको स्वर्ग मिला, तो मै आपके साथ स्वर्ग में नही आऊंगा! आप जैसे निर्बलों के साथ स्वर्ग में रहेने से तो मै नर्क में रहेना पसंद करूँगा!
नेताजी : (प्रवेश करते हुए) किसे नर्क में जाना है?
बन्टी : आप कौन?
नेताजी : कपडों पर से कौन लगता हूँ?
बन्टी : कपड़े पर से क्या लगते हो, इससे ये ज्यादा महत्व का है की कपड़े के अंदर में , असल में क्या हो? अच्छे पैकिंग में प्रोडक्ट अच्छा ही निकले ये जरूरी तो नही!
नेताजी : मै एक नेता हूँ!
बन्टी : आप का नाम?
नेताजी : पि के पराशर !
अष्टपुत्रे : आपका नाम कहीं सुना सा लग रहा है!
नेताजी : लगता है न! पुरे भारत वर्ष में बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक और गरीबों से लेकर अमीरों तक, सबको मेरा नाम पता है! हर कोई मेरे नाम की ये करता है!
बन्टी : ये मतलब?
नेताजी : ये मतलब जय जय कार!
बन्टी : मुझे लगा ये मतलब हाय हाय!
नेताजी : आज मै नही रहा, इस लिए कितने सारे लोक शोकाकुल होंगे! और कंई लोग तो अश्रुं बहा रहे होंगे।
बन्टी : आनंदाश्रु
नेताजी : टीवी पर मुझे श्रधांजलि दे रहे होंगे!
बन्टी : हाँ टीवी पैर कौन सा सब सच दिखाते है?
नेताजी : पेपर में मेरा फोटो भी छपा होगा!
बन्टी : हाँ हाँ। "Wanted Dead or Alive" हेडिंग के साथ ।
नेताजी : लोग कहेते होंगे की पि के पराशर की मौत से भारत का जो नुक्सान हुआ है उसकी पूर्ति नही हो पायेगी।
बन्टी : बिलकुल ठीक। आपने जीते जी भारत का जो नुक्सान किया है उसकी पूर्ति भला कौन कर पायेगा?
नेताजी : तुम्हारी ये मजाल की उडा रहे हो मेरा मजाक?
बन्टी : नही नही सर। मै तो आपको श्रद्धांजलि दे रहा हूँ।
नेताजी : यहाँ पर आप दो ही कैसे? यहाँ के मेनेजर कहाँ है? मुझे उनकी ख़बर लेनी है!
अष्टपुत्रे : वो क्यूँ भला?
नेताजी : इतने बड़े नामांकित नेता के स्वागत के लिए कोई नही? ऐसी गलती? प्रोटोकॉल का उल्लंघन? एक तो वो यमदूत मुझे घसीटके यहाँ ले आया है, और यहाँ स्वागत के लिए कोई नही? फूल हार तो नही पहेनाये, ठीक है, पर यहाँ तो बैठने के लिए भी कहेने के लिए भी कोई नही है।
अष्टपुत्रे : मै हूँ ना! आइये, बैठिये!
नेताजी : आप कौन है? यहाँ के सफाई कर्मचारी?
अष्टपुत्रे : क्या? मै आपको सफाई कर्मचारी लग रहा हूँ? अपनी आँखे चेक करवाइए नेताजी! मै भी आप के जैसा ही एक मृतात्मा हूँ। याने की एक मारा हुआ इंसान!
नेताजी : मै कहाँ मरा हूँ? मै तो अमर हो गया हूँ। मेरी अंतेष्टि में कितनी भीड़ थी, पता है?
बन्टी : आप सचमुच मरे हो या नही ये कन्फर्म करने आए होंगे।
नेताजी : आपको किसीने सीधे मुह बात करना सिखाया ही नही है क्या?
अष्टपुत्रे : बन्टी! ये माननीय नेता है। इनका मान रखना चाहिए। कम से कम इनके सामने तो इनका मान रखो।
बन्टी : मान रखने का मतलब क्या? आते जाते इनके चरण छूने के क्या? मै तो जब भी ऐसे नेताजी देखता हूँ, मेरे हाथ उनके चरण की ओर जाने के बजाय अपने ही चरण की ओर जाते है। (अपने पैर से चप्पल निकाल के मारने का एक्शन करता है, और फ़िर चप्पल पहन लेता है)
(इस दरम्यान नेताजी, चित्रगुप्त की कुर्सी पर जा कर बैठ जाते है।)
अष्टपुत्रे : अरे अरे ! नेताजी, ये क्या कर रहे हो आप?
नेताजी : खाली कुर्सी दिखी सो उस पर बैठ गया! नेता जो हूँ। अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने की इतनी आदत हो गई थी की पिछले चुनाव में मैंने मेरा निशान भी टेबल-कुर्सी ही रखा था!
अष्टपुत्रे : अच्छा अच्छा। अब याद आया, आप वोही पराशरजी है जिन्होंने हमें एक एक मत के लिए ५००-५०० की हरी हरी नोट दी थी!
नेताजी : अरे अरे जरा आहिस्ता बोलिए, कोई सुन लेगा ना!
अष्टपुत्रे : क्या हुआ? चुनाव जीते या नही?
नेताजी : नही मेरा और मेरे चुनाव का नतीजा एक साथ आया। उधर मत दारों ने मुझे टेबल कुर्सी समेत उल्टा दिया, मै उसे सह नही पाया और यमदूत के हाथ में फस गया!
बन्टी : अष्टपुत्रे जी, देखिये, वहां नर्क में हिटलर है, और चंगेज खान भी!
अष्टपुत्रे: देख लो, देख लो! आख़िर तुम्हे, नर्क में उन्हीं लोगो का साथ देना है! हम तो स्वर्ग सुख का आनंद लेंगे। आइये नेताजी, (दोनों स्वर्ग द्वार की और चलते है और स्वर्ग में देखते है!) नेताजी, वो देखिये, वहाँ पर गाँधीजी लाल बहादूर शास्त्रीजी के साथ बातें कर रहे है ।
नेताजी : और देखो, सरदार पटेल और जवाहरलाल नहेरु भी है! अरे ये क्या? वहाँ थोड़ा आगे तो देखो! वहाँ तालाब में रम्भा और मेनका स्नान कर रही है!
अष्टपुत्रे : आहा हा हा ! ये दृश्य देख कर तो मेरा बंद पड़ा हुआ दिल फ़िर से धड़कने लगा है! वाह वाह!
नेताजी : वो देखो वो उर्वशी! मेरी ओर देख कर मुस्कुरा रही है! मै तो चला!
अष्टपुत्रे : (उसे खींचते हुए) अरे कहाँ चले?
नेताजी : उर्वशी बुला रही है । छोडो मुझे !
अष्टपुत्रे : सुनो, वो आपको नही मुझे बुला रही है! वो तो मेरे ऑफिस की स्टेनो है!
नेताजी: अरे, जो कोई भी हो, चलो चलकर मिलते तो है!
अष्टपुत्रे : (उसे जबरन पकडकर) मगर चित्रगुप्त की मंजूरी के बगैर हम अन्दर नही जा सकते ।
नेताजी : (गुस्से में) कब आएगा ये चित्रगुप्त ? (चित्रगुप्त आ के स्थान ग्रहण करते है, पर किसीका ध्यान नही है) अन्दर इतनी सुंदर सुंदर अप्सराएँ हमारी प्रतीक्षा कर रही है और हम चित्रगुप्त के आने की प्रतीक्षा कर रहें है ।
अष्टपुत्रे : इतने टाइम में तो आ जाने चाहिए थे, कहीं बीमार तो नही हो गए बिचारे?
नेताजी : बीमार शिमार कुछ नही होंगे! घूम रहे होंगे किसी सुंदर सी अप्सरा के साथ। आने दो उसको, ऐसी क्लास लूँगा, की कभी लेट आने की हिम्मत नही करेगा! मेरे जैसे महान नेता को इंतज़ार करवाता है? (तभी वो चित्रगुप्त को देखता है ) क्यूँ ठीक कहा ना? अरे आप कौन है?
चित्रगुप्त : मै चित्रगुप्त।
नेताजी : (हाथ मिलाने की कोशिश करते हुए) Glad to meet you. (झट से हाथ वापस लेते हुए) क्या? चित्रगुप्त? माफ़ कीजिये मैंने आपको देखा ही नही।
अष्टपुत्रे : महाराज , हमें माफ़ कीजिये । ऑफिस में साहब की गैर मौजूदगी में जैसे बोलते थे, वैसे ही यहाँ बोल गए । आदत से मजबूर।
नेताजी : हम तो बड़ी बेसब्री से आपका इंतज़ार कर रहे थे।
चित्रगुप्त : वो तो मुझे आपकी बातों से पता चल ही गया!
नेताजी : महाराज, अब मुझे जल्दी से जल्दी स्वर्ग में भेज दीजिये। मेरा मन स्वर्गसुख भोगने के लिए, बेकाबू हो रहा है।
अष्टपुत्रे : महाराज, मुझे भी जल्दी भेज दीजिये, स्वर्गमें जान -पहेचान वाले बहुत लोग है।
चित्रगुप्त : हे मुर्ख जीवों। तुम्हारे पाप और पुण्य का लेखा जोखा होने तक, आप स्वर्ग तो क्या नर्क में भी नही जा सकते ।
बन्टी : महाराज, मुझे तो आप जल्दी नर्क में भेज दीजिये, यहाँ तो मै, बड़ा बोर हो गया!
चित्रगुप्त : ठीक है। अब यहाँ पर उपस्थित सभी जीवात्माओं के पाप पुण्य का हिसाब होगा! मगर पहेले ये बात ध्यान से सुनो। अगर मनुष्य के द्वारा किए गए पुण्य कर्म, उसके पाप कर्म से ज्यादा है, तो उसका स्वर्ग में स्थान पक्का है! मगर अगर पाप कर्म, पुण्य कर्म से ज्यादा है, तो नर्क में जाना पड़ेगा । समझ गए?
(सब एक साथ कहेते है "हाँ जी") आज तुम सब में से स्वर्ग में जाने योग्य जीवात्मा सिर्फ़ एक ही है! (सब "कौन होगा" ? ऐसे आपस में बातें करते है) (नोट बुक के पन्नो को पलटते हुए) पि के पराशर कौन है?
नेताजी : हाँ हाँ। मैं ही हूँ महाराज। (हाथ जोड़ते और हँसते हुए)
चित्रगुप्त : हाथ नीचे लो, और तुम्हारी बत्तीसी दिखाने की कोई जरूरत नही है! मै कोई तुम्हारा मतदार थोडी न हूँ?  (अष्टपुत्रे जोरसे हँसते है। फ़िर चित्रगुप्त की आँखे देख कर बंद हो जाते है)
नेताजी : मै, मै जाऊँ स्वर्ग में?
चित्रगुप्त : नहीं। तुम्हारे नसीब में नर्क है, क्यूँ की तुम्हारे खाते में तो पाप कर्म ही ज्यादा है।
नेताजी : नही, नही । ऐसे कैसे हो सकता है महाराज? मैंने तो पुरी जिन्दगी, लोगों की भलाई के लिए काम किया है।
चित्रगुप्त : अच्छा ! भलाई के काम ? जरा बताइए क्या भलाईके काम किए आपने?
नेताजी : गरीबों को पक्के घर दिलवाने की योजना के लिए घर घर घूमके चंदा जुटाया ।
चित्रगुप्त : और उस निधि को अपने ही बंगलो पे खर्च किया!
नेताजी : उसका क्या है, जब योजना शुरू हुई , तब तो मै भी गरीब ही था, सोचा, योजना की शुरुआत ख़ुद से ही कर लेता हूँ । हाँ और मैंने शराब बंदी का जो कार्य किया है, उसका भी तो पुण्य है!
चित्रगुप्त : बहार "शराब छोडो" और घर में "शराब पि लो" ये कैसा पुण्य कर्म है ?
नेताजी : वो ऐसा हुआ! इतनी सारी शराब का नाश करना था! बाहर गटर में फेक के ख़तम करने से सोचा ख़ुद के पेटमें डाल के ही ख़तम करता हूँ। लोगो को तो नही मिलेगी ना!
चित्रगुप्त : एक असहाय अबला नारी की मजबूरी का तुमने गैर फायदा उठाया।
नेताजी : Actually आप किस नारी की बात कर रहे है?
चित्रगुप्त : वो एक शिक्षिका थी।
नेताजी : अच्छा वो शिक्षिका ? उसका तो मैंने तबादला रुकवाया था। वो तो पुण्य कर्म था!
चित्रगुप्त : पर उसके बदले में तुमने उससे क्या लिया?
नेताजी : भगवान् की कसम । जो और जितना उसने दिया, वो और उतना ही मैंने लिया! उसके पास देने लायक उतना ही तो था!
चित्रगुप्त : नराधम! तुम्हारे जितना नीच तो नर्क में भी कोई न होगा! खुदके पाप कर्म का समर्थन करते हुए, तुम जो अंहकार दिखा रहे हो, उसके लिए मै तुम्हे उबलते हुए तेल में डालने का फरमान करता हूँ। (बेल बजाता है, यमदूत आता है)
नेताजी : यह अन्याय है, इसके विरोधमें मै आन्दोलन करूँगा!
यमदूत : नर्क में तुम आन्दोलन तो क्या, सम्मेलन भी नही कर सकते।
नेताजी : मै सत्याग्रह करूँगा।
यमदूत : उसके लिए तुम्हे उल्टा लटका कर चाबुक की फटकार मिलेगी।
नेताजी : मै नर्क में नही जाऊँगा!
यमदूत : (चाबुक दिखाकर ) क्या कहा?
नेताजी : जा रहा हूँ जा रहा हूँ (यमदूत, उसे ले जाता है नर्क में)
चित्रगुप्त : शांत हो जाओ सब । जीवात्मा क्रमांक २ !
बन्टी : यस सर, बन्टी लफंगे हाज़िर है!
चित्रगुप्त : नहीं आप नहीं। दिगंबर पीताम्बर अष्टपुत्रे । आगे आओ।
अष्टपुत्रे : (थरथराते हुए) महाराज, महाराज, मुझे नर्क में मत भेजो। पुरी जिन्दगी मैंने बहुत सहा है । मोटी और लडाकू बीबी के साथ, ३० साल तक घर गृहस्थी चलाई है! अब मुझे प्यार करने वाली अप्सराओं के साथ रहेना है। बीबी और बॉस के ताने सुन सुन के मै पक गया हूँ, अब मुझे गन्धर्व का गान सुनना है। वहाँ राशनिंग का मोटा मोटा अनाज खा के उबता गया हूँ। अब मुझे मीठे पकवान खाने है! वहां १० बाय १० की खोली में एक मोटी बीवी और आठ आठ बेटियों के साथ रहेता था, अब यहाँ स्वर्ग में सेपरेट फ्लैट दीजिये। मुझ पर दया करो, मै आपके पैर पकड़ता हूँ।
चित्रगुप्त : तुम्हारे रोने धोने से और दया की भीख मागने से कुछ नही होगा! तुम्हे नर्क ही जाना पड़ेगा!
अष्टपुत्रे : महेरबानी करके ऐसा मत करिए! मैंने तो पृथ्वी पर पुरा नर्क वास ही सहा है। पता है, मुझे आठ आठ तो बेटियाँ थी।
चित्रगुप्त: आठ आठ बेटियाँ क्या ये एक ही कारण काफ़ी नही है, तुम्हे नर्क में भेजने के लिए?
अष्टपुत्रे : वो कैसे महाराज?
चित्रगुप्त : तुमने फॅमिली प्लानिंग के बारें में नही सुना?
अष्टपुत्रे : मै तो लड़का होने का इंतज़ार कर रहा था। अब सब की सब लड़कियाँ हुई इसमें मेरा क्या कुसूर?
चित्रगुप्त : तुम्हारा नही तो क्या मेरा कुसूर है? तुम जैसे मूर्खों के कारण, अब पृथ्वी पर क्या, नर्क में भी रहेने की जगह नही बची। तुम्हे तो ज्यादा कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
अष्टपुत्रे : ऐसा मत करो, मै बिनती करता हूँ।
चित्रगुप्त : लेकिन तुम स्वर्ग के लिए अयोग्य हो।
अष्टपुत्रे : मै नही तो फ़िर कौन है स्वर्ग के लिए योग्य?
चित्रगुप्ते : आज स्वर्ग में जाने का मान सिर्फ़ एक ही पुण्यात्मा को मिलता है, और वो है बन्टी लफंगे।
बन्टी : कौन ? मै? क्यूँ मजाक उडा रहे हो महाराज?
अष्टपुत्रे : ये नामुमकिन है। ये तो एकदम मवाली था । हमेशा लड़कियों को छेड़ता रहेता था। मेरी बेटियों को भी इसने बहुत तंग किया है।
बन्टी : यह झूठ है। उल्टा इनकी बेटियाँ ही मुझे परेशान करती थी। वो तो आठ बहेने थी, और मैं अकेला! फ़िर भी महाराज, मेरा नाम स्वर्ग की लिस्ट में होना, अशक्य है। आप देख लीजिये, नाम में शायद कुछ गड़बड़ होगी!
चित्रगुप्त : नाम में गड़बड़ होने के लिए आपको ये वोटरकी लिस्ट लग रही है क्या?
अष्टपुत्रे : चित्रगुप्त साहेब, मै पहेले ही बता देता हूँ, की ये स्वर्ग में बहुत गड़बड़ करेगा। वहाँ की सारी अप्सराओं को बिगाड़ देगा। बन्टी सीधी तरह से अपने पापों की कबूली दो।
बन्टी : महाराज, क्षमा कीजिये, लेकिन लगता है आपके हिसाब में कुछ गलती है ।
चित्रगुप्त: हिसाब में गलती करने के लिए, मै क्या एकाउंटेंट हूँ? तुम मेरे साथ स्वर्ग में चलो, बाकि सब नर्क में जायेंगे।
अष्टपुत्रे : चित्रगुप्तजी, ये बन्टी, नालायक है। उसने कितने बार लोगोंकी जेब काटी है! एक बार तो मेरी भी काटी है!
बन्टी : हाँ। और बाद में पछताया भी, क्यूंकि इनकी जेब बिल्कुल खाली थी।
अष्टपुत्रे : इसका तो जुए और शराब का भी धंदा था!
चित्रगुप्त : अरे ओ मुर्ख! उसके पापों की गिनती करवाने से, तुम्हारा पुण्य थोडी न बढेगा? तुम्हारा नर्क में जाना तय है!
बन्टी : मै आपके पैर पकड़ता हूँ। मेरे बदले इनको जाने दो स्वर्ग में।
चित्रगुप्त : अब बस! बहुत हो गया! यमदूत, इन्हे ले जाओ नर्क में।
अष्टपुत्रे : मुझे स्वर्ग में जाने दो! मुझे स्वर्ग में जाने दो! (यमदूत अष्टपुत्रे को नर्क में ले जाता है)
बन्टी : मेरे साथ आए हुए सब चले गए, अब मुझे भी इजाजत दीजिये, नर्क में जाने की!
चित्रगुप्त: पागल हो क्या? स्वर्ग मिलने पर कोई नर्क क्यूँ जाएगा?
बन्टी : लेकिन मै सचमुच पापी हूँ। मैंने एक आदमी को हमेशा के लिए लंगडा कर दिया था।
चित्रगुप्त : पता है। लेकिन याद करो क्यूँ? उसने एक अबोध बालिका पर बलात्कार किया था।
बन्टी : मै जेब कतरा था ।
चित्रगुप्त: लेकिन जेब काटने पर जो पैसे मिलते, उनसे तुम गरीबों की मदद करते। बहुत बार बीमारों के लिए दवाई भी लाते थे! तुमने बहुत अपराध किए, लेकिन हर बार हेतु बुरा नही था! किसी की भलाई के लिए किया गया पाप कर्म भी पुण्य कर्म में गिना जाता है। तुम्हें ख़याल भी नही, लेकिन तुम्हारे द्वारा जो पाप कर्म हुए, उनकी परिणति, तुम्हारे परिसर में रहेने वाले लोगोकी भलाई में हुई। और इसलिए तुम्हारा पुण्य बढ़ता चला गया। तुमने एक स्त्री को पापिओं से बचाया, एक छोटे बच्चे को आग से बचाया। और सबसे महत्वपूर्ण पुण्य तो एक डूबती हुई युवती के प्राण बचाने के लिए तुमने अपने प्राणों की आहुति दी।
बन्टी : ये सब सच हो फ़िर भी मुझे स्वर्ग में नही जाना, मुझे तो नर्क चाहिए ।
चित्रगुप्त, अरे लेकिन ये पागलों सी जिद्द क्यूँ?
बन्टी : महाराज, पृथ्वी पर मैंने पुरी जिन्दगी कैसे बितायी, आपको तो मालूम ही है। जन्म लेते ही बेहाल जिन्दगी की शुरुवात हो गई। माँ कहेने से पहेले मैंने गाली गलोच सिख लिया। स्कूल तो जा न सका, चोरी, लूट, डकैती आदि सिख लिया। दारु पीना, मारपीट करना, आदत सी हो गई है। अब तो यही सब गंदगी, मेरी पहेचान और जरूरत भी बन गए है। मै जैसे पृथ्वी पर जिया हूँ, यहाँ भी वैसे ही रहेने दीजिये। झोपड़ पट्टी में नर्कवास भोगने की आदत हो गई है, वैसे ही अब नर्क में भी भुगतने दीजिये।
चित्रगुप्त : नही नही । बन्टी, तुमने नर्कवास बहुत भोग लिया पृथ्वी पर। नर्कवास भोगते हुए भी आपने इतने सारे पुण्य किए है। अब तुम स्वर्ग सुख का आनंद उपभोगों। चलो, मेरे साथ स्वर्ग में चलो।
(चित्रगुप्त बन्टी को ले के स्वर्ग की ओर चलते है और परदा गिरता है!)

Wednesday, January 6, 2010

चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,
चहेरे पे झूठी हँसी लिए,
अपने आप को छलता रहा,
बेदर्द ज़माने के लिए|

सूरत-ऐ-आइना काफी था
दिदार-ऐ-दिल के लिए,
किसने कहा था मियां
चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ?

चार दिन जवानी के काफी थे
दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए,
क्यूँ मांगी थी दुआ रब से
लम्बी जिंदगानी के लिए ?

रहेमत परवर दिगार की काफी थी
जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए
किसने कहा था मियां,
खुद को खुदा समझने के लिए?