Wednesday, January 6, 2010

चहेरे पे चहेरा

दिल में दबाये गम,
चहेरे पे झूठी हँसी लिए,
अपने आप को छलता रहा,
बेदर्द ज़माने के लिए|

सूरत-ऐ-आइना काफी था
दिदार-ऐ-दिल के लिए,
किसने कहा था मियां
चहेरे पे चहेरा लगाने के लिए ?

चार दिन जवानी के काफी थे
दास्तान-ऐ-मुहबत के लिए,
क्यूँ मांगी थी दुआ रब से
लम्बी जिंदगानी के लिए ?

रहेमत परवर दिगार की काफी थी
जिन्दगी की राह-ऐ-गुज़र के लिए
किसने कहा था मियां,
खुद को खुदा समझने के लिए?