कोयल कुहू-कुहू करने लगी
सावन के दिन आए
ओ परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए।
सूरज बादलों के संग में
लूपा छुपी खेले
ओ परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए।
शीतल मंद पवन की लहेरें
इस तन मन को सहेलायें
ओ परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए।
पहेले बारिश की बौछारें
मिटटी की सौंधी सुगंध फैलायें
ओ परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए।
Wah Kya Baat Hai Tushar jii :))
ReplyDeleteLovely
Shukriya !
ReplyDeleteSuperb Tushar ji. Bahot acha laga. Pk :)
ReplyDeleteThank u PK Ji.
ReplyDeletewah kya baat hai Kavi Mahodaya ji......"Martini"
ReplyDeleteThanks Martini:)
ReplyDelete