Wednesday, April 29, 2009

याद सताए

कोयल कुहू-कुहू करने लगी
सावन के दिन आए
परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए।

सूरज बादलों के संग में
लूपा छुपी खेले
परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए

शीतल मंद पवन की लहेरें
इस तन मन को सहेलायें
परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए

पहेले बारिश की बौछारें
मिटटी की सौंधी सुगंध फैलायें
परदेसी बालम मुझको तेरी याद सताए

मधु का प्याला

जिंदगी के गम इस कदर बढे
दिल पे न रहा काबू हमारा
हाल जब हुआ बेहाल हमारा
थाम लिया हमने मधु का प्याला।

शाम को आनेका था वादा उनका
मगर कब तक करते इंतज़ार उनका
जब लगा की अब न होगा दीदार उनका
थाम लिया हमने मधु का प्याला

दिल जिस वक्त टूटा हमारा
न निकली आह न हुआ हंगामा
न रुकी जब आँसूओं की धारा
थाम लिया हमने मधु का प्याला

दिल हो गया है लहू लुहान
न ये चाह की तन में रहे प्राण
अब हमें चाहिए विष भरा प्याला
किस काम का ये मधु का प्याला?

एक शायरी


दिलके गम को हल्का कर लेते है
हाँ, हम शायरी कर लेते है.

हम हैरान

जिन्हें हम समझते थे 'खास'
उन्होंने कहे दिया आप है 'आम'
बस इतनी सी थी बात
और हो गए हम हैरान!

सम्हल जा तू


जहाँ भी देखूं धुंधला सा दिखाई देता है
हर अपना अब बेगाना दिखाई देता है.

हर हँसते चहेरे की आँख में आँसू दिखाई देता है
हर इन्सान अब यहाँ झूठा दिखाई देता है.

हर दोस्त के हाथ में खंजर दिखाई देता है
हर इन्सान अब दगाबाज दिखाई देता है.

किसे फुर्सत जो सुने तेरी दास्तान् ए दिल-ऐ नादां
हर कोई यहाँ अपने आप में मशगुल दिखाई देता है.

अब तो सम्हल जा तू, ओ मेरे दिल
गैरों में भी कभी कोई, अपना दिखाई देता है ?


अपनापन

गैरों में कहाँ था इतना दम
दिलको हमारे दे पाते गम .
तेरी जुदाई करती है आँखें नम
तुझे अपना जो माने है ये मन.
मेरी आँखें फिरसे ना हो नम
सदा रहे हममें ये अपनापन.

प्रस्तावना

यहाँ पे हिन्दी भाषां में कुछ लिखने का मेरा प्रयास रहेगा ! आशा करता हूँ की मेरे विचार,मेरी भावनाएं आपको पसंद आएगी.